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धान का उत्पादन

खरीफ सीजन में धान की फसल की इस तरह करें देखभाल होगा अच्छा मुनाफा

खरीफ सीजन में धान की फसल की इस तरह करें देखभाल होगा अच्छा मुनाफा

धान की रोपाई के पश्चात फसल को ज्यादा देखभाल की आवश्यकता पड़ती है। इस वजह से उर्वरक, खाद एवं सिंचाई के साथ दूसरे प्रबंधन कार्य ठीक तरह से कर लेने चाहिये। खरीफ सीजन में भारत के अधिकांश किसान अपने खेतों में धान की फसल लगाते हैं। चावल का बेहतरीन उत्पादन पाने के लिये आरंभ से अंत तक प्रत्येक कार्य सावधानी पूर्वक किया जाता है। परंतु, इतने परिश्रम के बावजूद धान के कल्ले निकलते वक्त विभिन्न समस्याऐं सामने आती हैं। धान की फसल के लिये यह सबसे आवश्यक समय होता है। इस वजह से आवश्यक है, कि उर्वरक, खाद एवं सिंचाई सहित दूसरे प्रबंधन कार्य सही तरह करके धान का अच्छा उत्पादन अर्जित किया जाये। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, रोपाई के उपरांत फसल को ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। इस दौरान कीड़े एवं रोगों का नियंत्रण तो करना ही है। साथ ही, उत्पादन बढ़ाने वाले वैज्ञानिक नुस्खों पर कार्य करना फायदेमंद माना जाता है।

खेत से जलभराव की समुचित निकासी का प्रबंध करें

यदि फसल में अधिक जलभराव की स्थिति है, तो जल निकासी करके अतिरिक्त जल को खेत से बाहर निकाल दें। उसके बाद में हल्की सिंचाई का काम करते रहें, जिससे मृदा फटने की दिक्कत न हो सके। यह कार्य इस वजह से जरूरी है, कि फसल की जड़ों तक सौर ऊर्जा पहुंच सके। साथ ही, फसल में ऑक्सीजन की सप्लाई भी होती रहे। यह कार्य रोपाई के 25 दिन उपरांत ही कर लेना चाहिए, जिससे कि समय रहते पोषण प्रबंधन किया जा सके।

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धान की फसल की बढ़वार के लिए समय पर पोषण की आवश्यकता होती है

धान की रोपाई के 25-50 दिन के दरमियान धान की फसल में कल्ले निकलने शुरू हो जाते हैं। ये वही वक्त है जब धान के पौधों को सबसे ज्यादा पोषण की आवश्यकता होती है। इस दौरान धान के खेत में एक एकड़ के हिसाब से 20 किलो नाइट्रोजन एवं 10 किलो जिंक का मिश्रण तैयार कर फसल पर छिड़क देना चाहिये। कृषक भाई यदि चाहें तो अजोला की खाद भी फसल में डाल सकते हैं।

फसलीय विकास एवं उत्तम पैदावार हेतु निराई-गुड़ाई

फसल का विकास और बेहतरीन उत्पादन के लिये धान के खेत में निराई-गुड़ाई का कार्य भी करते रहें। इससे फसल में लगने वाली बीमारियां एवं कीड़ों के प्रकोप का पता लग जाता है। निराई-गुड़ाई करने से जड़ों में आक्सीजन का प्रभाव होता है और पौधों के विकास में सहयोग मिलता है। कृषक भाई चाहें तो फसल पर उल्टी एवं सीधी दिशा में बांस से पाटा लगा सकते हैं, जिससे जड़ों में खिंचाव होने लगता है। साथ ही, बढ़वार भी काफी तेजी से होने लगती है।

धान की फसल में खरपतवार नियंत्रण

अक्सर धान के खेत में गैर जरूरी पौधे उग जाते हैं, जो धान से पोषण सोखकर फसल की उन्नति से रोकते हैं, इन्हें खरपतवार कहते हैं। खरपतवार को नष्ट करने हेतु 2-4D नामक खरपतवार नाशी दवा का स्प्रे करें। पेंडीमेथलीन 30 ई.सी भी एक प्रमुख खरपतवार नाशी दवा है, जिसकी 3.5 लीटर मात्रा को 850-900 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के मुताबिक खेतों में डाल देना चाहिये।

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जैविक खाद का इस्तेमाल धान की फसल में किया जाता है

प्राचीन काल से ही धान की फसल से बेहतरीन उत्पादन लेने के लिये जैविक विधि अपनाने का सलाह मशवरा दिया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, धान एंजाइम गोल्ड का उपयोग करके बेहद लाभ उठा सकते हैं। बतादें, कि धान एंजाइम गोल्ड को समुद्री घास से निकाला जाता है। जो धान की बढ़वार और विकास में सहयोग करता है। यह ठीक अजोला की भांति कार्य करता है, जिससे कीड़ों एवं रोगों की संभावना भी कम हो जाती है। इसके छिड़काव के लिये एक मिली. धान एंजाइम गोल्ड को एक लीटर पानी में मिलाकर घोल बनायें। साथ ही, एक हेक्टेयर खेत में इसकी 500 लीटर मात्रा का इस्तेमाल करें।
केंद्र द्वारा टूटे चावल को लेकर बड़ा फैसला

केंद्र द्वारा टूटे चावल को लेकर बड़ा फैसला

टूटे चावल व सफेद भूरा के निर्यात (Broken Rice Export) से सम्बंधित केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। केंद्र सरकार का यह निर्णय केवल उन्हीं जारी कांट्रेक्ट के लिए स्वीकृत होगा जो कि ९ सिंतबर से पूर्व हो चुके हैं। इसकी निर्यात करने की अंतिम समयावधि 31 मार्च निर्धारित की गयी है। इसके चलते धान निर्यात करने वालों को काफी फायदा होगा। इस वर्ष मौसम की बदहाली की वजह से धान का उत्पादन बेहद कम रहा है। कठिनाइयों के पूर्वानुमान को देखते हुए केंद्र सरकार ने टूटे चावल के निर्यात पर रोक लगा दी थी और इसकी वजह से पहले से ही निर्धारित चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लग गया। फिलहाल केंद्र सरकार द्वारा टूटे चावल व सफेद भूरा के निर्यात से सम्बंधित अहम निर्णय लिया गया है। सरकार द्वारा नवीन अधिसूचना के अंतर्गत 9 सितंबर से पूर्व जारी धान अनुबंध को निर्यात हेतु स्वीकृति मिल चुकी है। इसी संबंध में बहुत सारे धान निर्यातकों द्वारा बंदरगाहों में रुके इस चावल को विदेश भेजने के सन्दर्भ में सरकार समक्ष अपनी बात रखी थी, जिसके उपरांत सरकार द्वारा स्वीकृति मिल गयी है। साथ ही, अन्य चावल निर्यात फिलहाल रुका रहेगा। विशेष बात यह है कि केंद्र सरकार का यह निर्णय केवल उन्हीं जारी कांट्रेक्ट के लिए स्वीकृत होगा जो कि ९ सिंतबर से पूर्व हो चुके हैं।


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केंद्र सरकार द्वारा टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था ?

देश में इस वर्ष बारिश की वजह से फसलों में भारी है। अधिकतर क्षेत्रों में सूखा पड़ने के चलते चावल की रोपाई संपन्न नहीं हो पायी। केंद्र सरकार द्वारा ८ सितम्बर को टूटे चावल पर रोक लगाई गयी थी। फिलहाल विभिन्न देशों को लगभग १० लाख टन चावल निर्यात किया जाना था, जिसे बंदरगाहों पर ही रोक लगने से अटक गया। इसके अतिरिक्त घरेलू आपूर्ति को भी प्रोत्साहित करने के साथ साथ खुदरा दाम को काबू करने हेतु भिन्न - भिन्न श्रेणी के चावलों के निर्यात पर भी २० % तक शुल्क निर्धारित कर दिया था।

भारत करेगा नेपाल को धान का निर्यात

भारत में धान की कम रकबे में रोपाई के बाद भी धान की घरेलू आपूर्ति संतुलित बनी हुई है। इसी के चलते केंद्र सरकार से नेपाल को भी धान निर्यात करने हेतु स्वीकृति मिल गयी है। केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना में ६ लाख टन पिसाई रहित धान नेपाल भेजने का निर्णय लिया गया है। विशेष बात यह है कि नेपाल अपनी अधिकतर खाद्य जरूरतों के लिए दीर्घकाल से भारत पर आश्रित रहता है।

भारत द्वारा ४० % धान निर्यात किया जायेगा

आपको ज्ञात करादें कि पूरी दुनिया में धान की पूर्ति के लिए भारत से लगभग ४०% धान विभिन्न देशों के लिये भेजा जाता है। भारत के सफेद एवं भूरे चावल की सर्वाधिक मांग होती है। लेकिन कुछ देशों में टूटे हुए चावल की भी बेहद मांग है, इसकी मुख्य वजह यही है कि इससे पूर्व भी पिछले माह सरकार द्वारा ३,९७,२६७ टन टूटे चावल के निर्यात को स्वीकृति दी थी। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष २०२२ में भारत से लगभग ९३. लाख मीट्रिक टन चावल विदेशों को निर्यात किया गया है। इस चावल में २१.३१ लाख मीट्रिक टन टूटा हुआ चावल भी सम्मिलित है। साथ ही, चावल के कुल निर्यात में २२.७७ फीसद भागीदारी टूटे हुए चावल की होती है, क्योंकि विभिन्न देशों में अच्छे चावल के साथ-साथ टूटे चावल की भी भारी मांग रहती है। टूटे चावल का इस्तेमाल शराब उद्योग, एथेनॉल उद्योग एवं यहां तक कि पॉल्ट्री एवं पशु उद्योग में भी किया जाता है।
जानें भारत में सबसे बड़े पैमाने पर की जाने वाली फसलों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

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भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की 70 प्रतिशत आबादी खेती किसानी पर ही निर्भर रहती है। कोरोना जैसी महामारी में भी केवल कृषि क्षेत्र ने ही देश की अर्थव्यवस्था को संभाला था। भारत में कृषि को देश की रीढ़ की हड्डी माना जाता है। भारत पहले से ही बहुत सारी फसलों का बहुत बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। इन फसलों के अंतर्गत मक्का, दलहन, तिलहन, चाय, कॉफी, कपास, गेहूं, धान, गन्ना, बाजरा आदि शम्मिलित हैं। अन्य देशों की तुलना में भारत की भूमि कृषि हेतु अत्यधिक बेहतरीन व उपजाऊ होती है।


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भारत में प्रत्येक फसल उत्पादन हेतु विशेष जलवायु एवं मृदा उपलब्ध है। जैसा कि हम जानते ही हैं, कि फसल रबी, खरीफ, जायद इन तीन सीजन में की जाती है, इन सीजनों के अंतर्गत विभिन्न फसलों का उत्पादन किया जाता है। भारत की मृदा से उत्पन्न अन्न का स्वाद विदेशी लोगों को भी बहुत भाता है। आंकड़ों के अनुसार भारत में बाजरा, मक्का, दलहन, तिलहन, कपास, धान, गेहूं से लेकर गन्ना, चाय, कॉफी का उत्पादन विशेष तौर पर किया जाता है, परंतु इन फसलों में से धान की फसल का उत्पादन भारत के सर्वाधिक रकबे में उत्पादित की जाती है।

कौन कौन से राज्यों में हो रही है, धान की खेती

हालाँकि धान एक खरीफ सीजन की प्रमुख नकदी फसल है। साथ ही, देश की आहार श्रृंखला के अंतर्गत धान सर्वप्रथम स्थान पर आता है। भारत के धान या चावल की खपत देश में ही नहीं विदेशों में भी भारतीय चावल की बेहद मांग है। एशिया के अतिरिक्त विभिन्न देशों में प्रतिदिन चावल को आहार के रूप में खाया जाता है। यही कारण है, कि किसान निर्धारित सीजन के अतिरिक्त भी विभिन्न राज्यों में बारह महीने धान का उत्पादन करते हैं। अगर हम धान का उत्पादन करने वाले कुछ प्रमुख राज्यों के बारे में बात करें, तो पंजाब, हरियाणा, बिहार, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और आन्ध्र प्रदेश में धान का उत्पादन अच्छे खासे पैमाने पर किया जाता है।

धान की खेती किस प्रकार की जाती है

चावल केवल भारत के साथ-साथ विभिन्न देशों की प्रमुख खाद्यान्न फसल है। धान की फसल के लिए सबसे जरूरी बात है, इसको जलभराव अथवा ज्यादा बरसात वाले क्षेत्र धान के उत्पादन हेतु बेहतर साबित होते हैं। इसकी वजह यह है, कि धान का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने हेतु बहुत ज्यादा जल आपूर्ति की जरूरत होती है। विश्वभर में धान की पैदावार के मामले में चीन पहले स्थान पर है, इसके उपरांत भारत दूसरे स्थान पर धान उत्पादक के रूप में बनकर उभरा है। चावल की खेती करते समय 20 डिग्री से 24 डिग्री सेल्सियत तापमान एवं 100 सेमी0 से ज्यादा बारिश एवं जलोढ़ मिट्टी बहुत अच्छी होती है। भारत में मानसून के दौरान धान की फसल की बुवाई की जाती है, जिसके उपरांत धान की फसल अक्टूबर माह में पकने के उपरांत कटाई हेतु तैयार हो जाती है।

इन राज्यों में धान का उत्पादन 3 बार होता है

देश के साथ अन्य देशों में भी धान की काफी खपत होती है, इसी वजह से धान की फसल कुछ राज्यों के अंदर वर्षभर में 3 बार उत्पादित की जाती है। इन राज्यों के अंतर्गत ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं असम प्रथम स्थान पर आते हैं, जो धान के उत्पादन हेतु प्राकृतिक रूप से समृद्ध राज्य हैं। इन राज्यों में कृषि रबी, खरीफ अथवा जायद के अनुरूप नहीं बल्कि ऑस, अमन व बोरो अनुरूप वर्ष में तीन बार धान की फसल का उत्पादन किया जाता है।

जलवायु परिवर्तन से क्या हानि हो सकती है

धान एक प्रमुख नकदी फसल तो है, परंतु ग्लोबल वार्मिंग एवं मौसमिक बदलाव के कारण से फिलहाल धान के उत्पादन में बेहद हानि हुई है। वर्ष 2022 भी धान के किसानों हेतु अत्यंत चिंताजनक रहा है। देरी से हुए मानसून की वजह से धान की रोपाई ही नहीं हो पाई है, बहुत सारे किसानों द्वारा धान की रोपाई की जा चुकी थी। परंतु अक्टूबर माह में कटाई के दौरान बरसात की वजह से आधे से ज्यादा धान नष्ट हो गया, इसलिए वर्तमान में चावल के उत्पादन की जगह पर्यावरण एवं जलवायु के अनुरूप फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जाता है।

धान की फसल के लिए योजनाएं एवं शोध

प्रत्येक खरीफ सीजन के दौरान समय से पूर्व धान का उत्पादन करने वाले किसानों हेतु बहुत सारी योजनाएं जारी की जाती हैं। साथ ही, कृषि के व्यय का भार प्रत्यक्ष रूप से किसानों को प्रभावित न कर सके। विभिन्न राज्य सरकारें न्यूनतम दरों पर चावल की उन्नत गुणवत्ता वाले बीज प्रदान करती हैं। धान की सिंचाई से लेकर कीटनाशक व उर्वरकों हेतु अनुदान दिया जाता है। धान की खेती के लिए मशीनीकरण को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। साथ ही, धान की फसल को मौसमिक प्रभाव से संरक्षण उपलब्ध कराने हेतु फसल बीमा योजना के अंतर्गत शम्मिलित किया गया है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, हाइब्रिड चावल बीज उत्पादन एवं राष्ट्रीय कृषि विकास योजना आदि भी चावल का उत्पादन करने वाले कृषकों को आर्थिक एवं तकनीकी सहायता मुहैय्या कराती है। चावल के सबसे बड़े शोधकर्ता के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय चावल अनुसन्धान संस्थान, मनीला (फिलीपींस) एवं भारत में राष्ट्रीय चावल अनुसन्धान संस्थान, कटक (उड़ीसा) पर कार्य कर रहे हैं, जो किसानों को धान की वैज्ञानिक कृषि करने हेतु प्रोत्साहित कर रहे हैं।
हरियाणा सरकार भूमिगत जल स्तर में गिरावट को लेकर सतर्क, अनुदान भी दिया जा रहा है

हरियाणा सरकार भूमिगत जल स्तर में गिरावट को लेकर सतर्क, अनुदान भी दिया जा रहा है

हरियाणा राज्य में गेहूं के उपरांत सर्वाधिक धान का उत्पादन किया जाता है। परंतु, किसान भाई भी धान की सिंचाई भी ट्यूबवेल के माध्यम से करती है। संपूर्ण भारत में भूमिगत जल का स्तर काफी तीव्रता से नीचे जा रहा है। इससे आने वाले समय में जल संकट मड़रा सकता है। विशेष बात यह है, कि भूमिगत जल का सर्वाधिक दोहन फसलों की सिंचाई में किया जा रहा है। इनमे भी सबसे अधिक भूमिगत जल का उपयोग धान की खेती में किया जाता है। यही कारण है, कि हरियाणा की तरह धान उत्पाद प्रदेश में भूमिगत जल स्तर में तीव्रता से गिरावट देखी जा रही है। हालांकि, इसको लेकर सरकार काफी सतर्कता बरत रही है। आज तक की रिपोर्ट के अनुसार, हरियाणा में गेहूं के उपरांत सर्वाधिक धान का उत्पादन किया जाता है। परंतु, किसान धान की सिंचाई करने के लिए भी ट्यूबवेल का ही उपयोग करते हैं। इस तरह एक हेक्टेयर में धान का उत्पादन करने पर 50 लाख लीटर जल की खपत हो जाती है। हरियाणा में 33 लाख एकड़ से ज्यादा के क्षेत्रफल में धान की बुवाई की जाती है। ऐसी स्थिति में बाकी राज्यों की भांति हरियाणा में भी भूमिगत जल स्तर बेहद तीव्रता से नीचे गिरता जा रहा है। परंतु, हरियाणा सरकार द्वारा इस संकट से निपटने के लिए एक नया फॉर्मूला समाधान के तौर पर ढूंढ लिया गया है।

हरियाणा सरकार अनुदान बतौर देगी 7 हजार रुपए

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की सरकार द्वारा भूमिगत जल स्तर को सुरक्षित करने हेतु ‘मेरा पानी मेरी विरासत’ योजना जारी की गई है। इस योजना के अंतर्गत राज्य सरकार धान के स्थान पर अन्य फसलों का उत्पादन करने के लिए किसानों को प्रेरित और प्रोत्साहित कर रही है। इससे भूमिगत जल स्तर को संरक्षित किया जा सके। विशेष बात यह है, कि धान के स्थान पर बाकी फसलों की खेती-किसानी करने वाले कृषकों को सरकार 7 हजार रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से अनुदान भी प्रदान कर रही है। यह भी पढ़ें: भूजल स्तर में गिरावट को देखते हुए इस राज्य में 1000 रिचार्जिंग बोरवेल का निर्माण किया जाएगा दरअसल, हरियाणा सरकार का कहना है, कि धान की खेती में अत्यधिक जल की आवश्यकता होने की वजह से जल का दोहन भी अधिक होता है। इसके स्थान पर मक्का, तिलहन, हरी सब्जी और दाल की खेती कर जल की खपत कम की जा सकती है। क्योंकि इन फसलों की खेती में बेहद न्यूनतम पानी की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त डीएसआर तकनीक द्वारा धान की खेती करने पर 4000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से अनुदान प्रदान किया जाएगा।

हरियाणा सरकार ड्रिप इरिगेशन पर कितना अनुदान दे रही है

हरियाणा सरकार सतर्कता से जल संरक्षण हेतु विभिन्न प्रकार की योजनाएं चला रही है। सरकार की तरफ से ड्रिप इरिगेशन पर भी 80 प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है। इस विधि द्वारा फसलों की सिंचाई करने पर जल की बर्बादी बेहद कम होती है, क्योंकि बुंद-बुंद कर के पानी फसलों की जड़ों तक पहुंचता है। यदि किसान भाई बाकी फसलों का उत्पादन करते हैं, तब वह सरकारी अनुदान का फायदा प्राप्त कर सकते हैं।